वाराणसी: लोकगायिका मालिनी अवस्थी ने कहा कि जब मंदिर तोड़े जा रहे थे, तब प्रभु के गान से ही भक्ति आंदोलन की शुरुआत हुई। काशी भक्ति आंदोलन का गढ़ रही है। जब आप भक्ति आंदोलन का काल क्रम समझने की कोशिश करेंगे तो पता चलेगा। वह शनिवार को बीएचयू के मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र में काशी मंथन और प्रभा खेतान फाउंडेशन की ओर से इतिहासकार डॉ. विक्रम संपत की पुस्तक ‘प्रतीक्षा शिव की : ज्ञानवापी काशी के सत्य का उद्घाटन’ पुस्तक के लोकार्पण के बाद आयोजित परिचर्चा में बोल रही थीं।इस दौरान मालिनी ने कहा कि इतिहास गवाह है कि ज्ञानवापी की लड़ाई उत्तर से लेकर दक्षिण तक समूचे भारत ने लड़ी है। डॉ. संपत ने बताया कि इस पुस्तक को लिखने में उनको शृंगेरी पीठ के शंकराचार्य अभिनव शंकरा भारती, हरिशंकर जैन, विष्णु शंकर जैन का सहयोग मिला। इस पुस्तक से यह सिद्ध होगा कि हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी की मुक्ति की लड़ाई कभी नहीं छोड़ी थी।
ज्ञानवापी मामले के अधिवक्ता विष्णु जैन ने बताया कि एक लिट फेस्ट में डॉ. संपत से भेंट होने पर इस पुस्तक का विचार जन्मा था। इस पुस्तक के जरिये सामान्य जनमानस को ज्ञानवापी को लेकर चले आ रहे विवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि समझने में मदद मिलेगी।
इससे पूर्व पुस्तक का विमोचन ज्ञानवापी की न्यायिक लड़ाई से चर्चा में आए अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन, लोकगायिका मालिनी अवस्थी, काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के सदस्य वेंकटरमण घनपाठी, काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य अर्चक श्रीकांत मिश्र, अहसास-वीमेन ऑफ वाराणसी की संयोजक भारती मधोक, काशी मंथन के संयोजक डॉ. मयंक नारायण सिंह और डॉ. विक्रम संपत ने पुस्तक का लोकार्पण किया। परिचर्चा सत्र के सूत्रधार डॉ. मयंक नारायण सिंह रहे। संचालन शुभांगी और सुकेशी ऋषभ ने किया।