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भोपाल। पूरे देश में इस समय पुरानी पेंशन की मांग जोर पकड़ रही है। इस बीच, पुरानी पेंशन के पात्र शिक्षकों को भी पेंशन का उतना लाभ नहीं मिलेगा, जितनी के लिए वे पात्र हैं। इस विसंगति का नुकसान 1998 से 2004 तक नियुक्त हुए करीब 85 हजार शिक्षकों को होगा। अध्यापक से शिक्षक बने 2.37 लाख कर्मचारी एनपीएस के मामले में सबसे नुकसान में हैं। आपको बता दें कि सभी कर्मचारियों के लिए एनपीएस यानि नई पेंशन स्कीम वर्ष 2004-05 में लागू हुई थी, लेकिन अध्यापक से शिक्षक बने इन 2.37 लाख कर्मचारियों के लिए यह योजना 2011 से लागू की गई है। 11 साल बाद लागू हुई स्कीम के कारण एक शिक्षक को औसतन एनपीएस की राशि में 2.64 लाख रुपए का घाटा होगा। आपको बता दें कि मध्य प्रदेश में वर्ष 1998 के पहले नियमित शिक्षकों की भर्ती की जाती थी। 1998 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने नियमित शिक्षकों की जगह शिक्षाकर्मी भर्ती शुरू कर दी। इसके बाद वर्ष 2018 तक 20 वर्षों में शिक्षाकर्मियों के बार—बार नाम बदले गए। 2001 से पदनाम बदलकर संविदा शिक्षक किया गया। वर्ष 2003 में भाजपा सरकार आई मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अप्रैल 2007 में शिक्षाकर्मी और संविदा शिक्षक दोनों का पदनाम बदलकर अध्यापक करके एक अलग संवर्ग बना दिया। तब भी यह सभी सरकारी कर्मचारी नहीं माने गए। अध्यापकों को स्थानीय निकायों के अधीन कर्मचारी का दर्जा दिया गया। जुलाई 2018 तक यह सिलसिला बदस्तूर जारी रहा। लगातार आंदोलन के बाद वर्ष 2018 विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अध्यापक संवर्ग से राज्य स्कूल सेवा कैडर बना दिया और सभी को शिक्षक पदनाम दिया। अब इनका पदनाम प्राथमिक शिक्षक, माध्यमिक शिक्षक और उच्च माध्यमिक शिक्षक कर दिया गया है। शिक्षकों का कहना है कि सरकार ने पदनाम भले ही बदल दिया हो, लेकिन पेंशन के मामले में 6 साल के घाटे की भरपाई नहीं हुई।