स्वत्व एवं स्वभाषा पर गर्व का भाव जागृत कर भारत को विश्वमंच पर सिरमौर बनाने में करें सहभागिता: उच्च शिक्षा मंत्री
भारत के ग्रामीण परिवेश में गृहिणियों को रसोई में किसी नापतौल (तराजू) की आवश्यकता नहीं होती, यह सर्वोत्कृष्ट एवं कुशल प्रबंधन है। इस प्रबंधन का किसी शैक्षणिक संस्थान में कोई पाठ्यक्रम उपलब्ध नहीं है, यह हमारा परंपरागत ज्ञान है। भारतीय दर्शन, सभ्यता एवं विरासत को श्रेष्ठ ज्ञान परम्परा के साथ जोड़ना होगा। इसके लिए भारत की परम्पराओं पर युगानुकुल परिप्रेक्ष्य दृष्टिकोण के आधार पर पुनः शोध एवं अनुसंधान करने की आवश्यकता है। यह बात उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं आयुष मंत्री श्री इन्दर सिंह परमार ने मंगलवार को शिवाजी नगर स्थित सरोजिनी नायडू शासकीय कन्या स्नातकोत्तर (स्वशासी) महाविद्यालय में नवनिर्मित केंद्रीय कंप्यूटर भवन के लोकार्पण अवसर पर कही। मंत्री श्री परमार ने केंद्रीयकृत कंप्यूटर लैब एवं इंग्लिश लैंग्वेज लैब का लोकार्पण किया। श्री परमार ने महाविद्यालय में “भारतीय ज्ञान परम्परा प्रकोष्ठ” एवं स्व सहायता समूह (Self Help Group) कक्ष का उद्घाटन भी किया। श्री परमार ने स्व सहायता समूह की छात्राओं से उनका परिचय भी प्राप्त किया। श्री परमार ने छात्राओं की सहभागिता से संचालित स्व सहायता समूह (Self Help Group) से तुलसी का एक पौधा खरीदकर, बेटियों को शुभकामनाएं प्रेषित की। मंत्री श्री परमार ने कहा कि महाविद्यालय का यह स्व सहायता समूह, प्रदेश के लिए आदर्श प्रबंधन का उत्कृष्ट उदाहरण बनकर अभिप्रेरणा का केंद्र बनेगा।
उच्च शिक्षा मंत्री श्री परमार ने कहा कि भारतीय दर्शन में अनादिकाल से कृतज्ञता एवं संरक्षण का भाव है। हमारी संस्कृति में नदी, वन, पर्यावरण एवं सूर्य आदि समस्त ऊर्जा के स्त्रोत हैं। इनसे हमने संरक्षण एवं कृतज्ञता के भाव से पूजा पद्धति, उपासना पद्धति और सम्मान करना सीखा, जो भारतीय ज्ञान परंपरा की अमूल्य निधि है। पुनः इस परंपरा को स्थापित करना है। भारत की ज्ञान परंपरा में प्राचीन काल से ही वेदों एवं ज्ञान का भंडार रहा है। भारत के पूर्वज निरक्षर नही थे, वे सभी भारतीय आध्यात्म से प्राप्त होने वाले ज्ञान से ओतप्रोत थे, उनमें वेदों का ज्ञान था। जिन्होने हमे व्यवहारिक, सांसारिक तथा सांस्कृतिक ज्ञान प्रदान किया। श्री परमार ने कहा कि देश तथा प्रदेश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसरण में भारत केंद्रित, भारतीयता समावेशी शिक्षा से शिक्षा जगत को समृद्ध करना है। इसके लिए अपनी परम्पराओं को पुनः वैज्ञानिकता के आधार पर तथ्यपूर्ण शोध कर, लोक कल्याणकारी महत्वपूर्ण मान्यताओं एवं परंपराओं को समाज के लिए शिक्षा में समावेश करने की आवश्यकता है। भारत को विश्वमंच पर पुनः विश्वगुरु एवं सिरमौर बनाने की संकल्पना को साकार करने के लिए सभी को स्वत्व एवं स्वभाषा पर गर्व का भाव जागृत कर, सहभागिता करनी होगी।