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शिप्रा परिक्रमा में मिली विक्रमादित्य काल की अद्भुत गजशिला शोधपीठ को सौंपी

उज्जैन। शिप्रा तीर्थ परिक्रमा में इस वर्ष कई पुरातात्विक सामग्रियां प्राप्त हुई हैं। इनमें सम्राट विक्रमादित्य के काल की अद्भुत गजशिला भी शामिल है। इस शिला पर हाथियों का सुंदर अंकन है। पुराविदों का दावा है कि ऐसे ही हाथी सांची के तोरण द्वार पर भी बने हुए हैं।इस शिला सहित प्राप्त अन्य पुरातात्विक सामग्री को सूचीबद्ध कर उज्जैन स्थित महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ को सौंपा गया है। यहां की कला वीथिका में लोग इस शिल्पकला को निहार सकेंगे। पुराविद डॉ. रमण सोलंकी ने बताया उज्जैन में मूर्ति शिल्प, मृतभांड (मिट्टी के बर्तन), चित्रकला आदि का गौरवशाली इतिहास रहा है। इसके प्रमाण हमें पुरातत्व अवशेषों व मूर्तियों के रूप में प्राप्त होते हैं।इस बार उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे हुई शिप्रा तीर्थ परिक्रमा यात्रा ऐसे ही कुछ ऐतिहासिक प्रमाणों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण रही है। यात्रा में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग नई दिल्ली के पुरातत्ववेत्ता रहे डॉ. नारायण व्यास के साथ डॉ. प्रीति पांडे, विक्रम विश्वविद्यालय के पुराविद डॉ. रमण सोलंकी, अजय शर्मा के साथ शोधार्थियों के दल को गढ़कालिका क्षेत्र से छठी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर विक्रमादित्य के काल की अनेक पुरातात्विक सामग्री प्राप्त हुई है। इनमें विक्रमादित्य काल की गजशिला, मौर्य काल के गज मस्तक, मिट्टी के पात्र आदि शामिल हैं। मिट्टी को कूटकर घड़े को गोल करने के उपयोग में आने वाला डेबर पाया जाना दर्शाता है कि यहां पात्र परंपरा बहुत समृद्ध थी। इससे ज्ञात होता है कि 2500 साल से यहां मृतभांड बनाने की परंपरा रही है, जिसका व्यापार आसपास के क्षेत्रों में किया जाता होगा। शोधदल में डॉ. मंजू यादव, डॉ. राजेश मीणा, तिलकराज सिंह सोलंकी तथा शांभवी शामिल रहे।

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